श्री हनुमानजी का सेवाव्रत (hanuman ji ki katha)
hanuman ji ki katha – पिछले लेख में भरतजी के व्रत-नियम की संक्षेप में चर्चा की इस लेख में \’श्रीहनुमानजी का सेवाव्रत\’ इस सन्दर्भ में संक्षेप में चर्चा करेंगे |
श्रीरामजी के सेवकों में हनुमानजी अद्वतीय हैं तभी तो भगवान श्रीशंकरजी कहते हैं –
हनूमान सम नहिं बड़भागी | नहिं कोउ राम चरन अनुरागी ||
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई | बार बार प्रभु निज मुख गाई ||
यद्यपि बड़भागी तो अनेक हैं | मनुष्य शरीर प्राप्त करने वाला प्रत्येक प्राणी बड़भागी है क्योंकि –
बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा ||
परन्तु मनुष्य शरीर प्राप्त कर सच्चे अर्थ में बड़भागी तो वह है जो श्री राम कथा का श्रवण करे —
जे सुनि सादर नर बड़भागी | भव तरहहिं ममता मद त्यागी ||
तथा श्री राम कथा का श्रवण करके जो श्रीरामानुरागि हो जाते हैं वे मात्र बड़भागी ही नहीं अपितु अति बड़भागी हैं तभी तो वानर कहते हैं –
हम सब सेबक अति बड़भागी | संतत सगुन ब्रम्ह अनुरागी ||
अतिशय बड़भागी कौन :- (hanuman ji ki katha)
जो भक्तिमार्ग पर चलकर भगवान की और बढ़ते हैं वे अति बड़भागी हैं किन्तु भगवान कृपा पूर्वक जिसके पास स्वयं चलकर पहुंच जाते हैं वे तो अतिशय बड़भागी हैं तभी तो तुलसीदास जी माता अहिल्या के लिए लिखते हैं —
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी——-||
परन्तु परहित के भाव से प्रभु की सेवा में देहोत्सर्ग करदेने वाले श्रीजटाऊ जी को भी रामचरित मानस की भावभरी भाषा में परम बड़भागी कहकर सम्बोधित किया गया है | यथा —
राम काज कारन तनु त्यागी | हरी पुर गयउ परम बड़भागी ||
भगवान शंकर कहते हैं की भले ही कोई बड़भागी, अति बड़भागी, अतिशय बड़भागी और परम बड़भागी बना रहे किन्तु —- हनुमान सम नहिं बड़भागी —||
क्योंकि –
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई | बार बार प्रभु निज मुख गाई ||
हनुमानजी श्रीराम के प्रति सेवाभाव से समर्पित हैं किन्तु उन्हें सेवक होने का अभिमान नहीं है क्योंकि उनका मन प्रभु प्रीति से भरा है | वे अपने को प्रभु के हांथों का बाण समझते हैं —
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना | एही भाँति चलेउ हनुमाना ||
hanuman ji ki katha – किसी ने बाण से पूछा कि तुम्हारे चरण तो हैं नहीं फिर भी तुम चलते हो अर्थात साधन के बिना तुम्हारी गति कैसे होती है तो बाण ने उत्तर दिया कि में अपने चरण से नहीं चलता वरन में अपने स्वामी के हांथ से चलता हूँ | में तो साधन हीन हूँ मेरी गति तो भगवान के हांथ है | इस प्रकार हनुमानजी अपने को श्रीराम जी का बाण समझकर सेवा करते हुए अपनी प्रत्येक सफलता में भगवान की कृपा का हांथ देखते हैं | इसलिए जब श्रीजानकी माता ने उलाहना देते हुए कहा – हनुमान प्रभु तो अतयन्त कोमल चित्त हैं किन्तु मेरे प्रति उनके कठोरतापूर्ण व्यौहार का कारन क्या है ?
कोमलचित कृपाल रघुराई | कपि केहि हेतु धरी निठुराई ||
इतना कहते कहते माता जानकी ब्यथित हो गयीं उनकी नेत्र निर्झर हो गए कण्ठ अवरुद्ध हो गया | अत्यंत कठिनाई से वे इतना ही कह पायीं आह ! प्रभु ने भी मुझे भूला दिया |
बचनु न आव नयन भरे बारी | अहह नाथ हौं निपट बिसारी ||
हनुमान जी की चतुरता :-
हनुमानजी ने निवेदन किय माँ ! प्रभु ने आपको भुलाया नहीं है तो श्रीजानकी माता ने पूछा इसका क्या प्रमाण है कि प्रभु ने मुझे भुलाया नहीं है | तब हनुमान जी ने प्रति प्रश्न करते हुए कहा कि माता प्रभु ने आपको भुला दिया है इसका क्या प्रमाण है | जानकी मैया ने कहा चित्रकूट में इंद्रपुत्र जयंत ने कौआ बनकर मेरे चरण में चोंच का प्रहार किया तो प्रभु ने उसके पीछे ऐसा बाण लगाया की उसे कहीं त्राण नहीं मिला किन्तु आज मेरा हरण करने वाला रावण त्रिकूट पर बसी लंका में आराम से रह रहा है इसीलिए लगता है —
अहह नाथ हौं निपट बिसारी ||
तब हनुमान जी ने कहा -माँ प्रभु ने जयंत के पीछे तो सींक के रूप में बाण लगाया था —
चला रुधिर रघुनायक जाना | सींक धनुष सायक संधाना ||
माताजी सोचिये लकड़ी की छोटी से सींक क्या बाण बानी होगी जानकी मैया बोली – बेटा बात सींक की नहीं प्रभु के संकल्प की है |-
प्रेरित मन्त्र ब्रम्हसर धावा | चला भाजि बायस भय पावा ||
हनुमान जी ने फिर कहा माँ यदि जयंत के पीछे प्रभु ने सींक का बाण लगा दिया तो क्या यह संभव नहीं रावण के पीछे प्रभु ने बानर के रूप में बाण लगा दिया हो हे माता आप कृपा पूर्वक देखिए तो आपके समक्ष हनुमान के रूप में श्रीराम जी बाण ही उपस्थित है –
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना | एही भाँति चलेउ हनुमाना ||
माता प्रभु ने आपको भुलाया नहीं है आप चिंता न करें –
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु |
जननी हृदय धीर धरु जरे निसाचर जानु ||
माता जानकी का प्रसन्न होना :-
श्री जानकी माता अत्यंत प्रसन होकर बोलीं बेटा तुमने मेरे मन का भ्रम मिटा दिया | में समझ गयी कि श्रीराम बाण के रूप में तुम मेरे समक्ष उपस्थित हो | हनुमानजी बोले माता ऐसा न कहें आपको तो पहले से ही विदित था कि श्रीराम बाण के रूप में यहां हनुमान उपस्थित है | तभी तो आपने रावण को फटकारते हुए कहा था –
अस मन समुझु कहति जानकी | खल सुधि नहिं रघुवीर बान की ||
उपर्युक्त प्रसंग से इसी तथ्य की पुष्टि होती है कि हनुमान जी अपने को प्रभु का बाण अर्थात उनके हांथ का यंत्र समझते हैं |
ऐसे परम विनम्र श्रीराम सेवाव्रती हनुमान जी के चरणों में शत – शत नमन
जिनके लिए स्वयं भगवान शंकर कहते हैं –
हनूमान सम नहिं बड़भागी | नहिं कोउ राम चरन अनुरागी ||
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई | बार बार प्रभु निज मुख गाई ||
इस लेख में हमने \” हनुमानजी का सेवाव्रत \” इस सन्दर्भ में संक्षेप में चर्चा की अगले लेख में \” जगन्माता पार्वती जी का तपोव्रत \” के सन्दर्भ में सक्षेप में चर्चा करेंगे |
इन्हें भी देखें :-
जानिए आपको कौनसा यंत्र धारण करना चाहिए ?
7 thoughts on “हनुमान जी की कथा (hanuman ji ki katha)”
If you are a servant then like Hanuman
Very beautiful hanuman story.
Very nice post थैंक्स
बहुत ही सुन्दर लेख लिखा पंडित जी
लेख पढ़कर मन प्रसन्न हो गया | जय श्री राम
jay Shri ram
very good information